मानव सेवा दल का परिचय

सेवा ही मानवता के विकास का मूल मन्त्र है.

विश्व के इतिहास में स्वयंसेवकों का एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। मानवता के मौलिक संवेगों से आवेशित होकर, मानव मात्र की निष्काम सेवा ही स्वयंसेवकों के जीवन का लक्ष्य बनकर रह गया है। प्राकृतिक प्रकोप हों या युद्ध की विभीषिकाओं, मेले हों या त्यौहार, पर्व या ऐसे ही आयोजन व महान सत्संग आयोजन में ये व्यवस्था संभालने से लेकर प्राथमिक चिकित्सा तक के क्षेत्र में सक्रिय रहें हैं।

स्वयंसेवक ही एक ऐसा सेवक है जो सही अर्थ में मानव समाज की सेवा करता रहा है। यों भी कहा गया है कि मानव मात्र या प्राणिमात्र की सेवा ही स्वयंसेवक का लक्ष्य है। स्वयंसेवक इसी सूत्र को लेकर अपने सेवा पथ पर अग्रसर होते रहे हैं। विश्व के नक्शे पर ऐसी अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जिनसे प्रेरित होकर ही आज भी कई संस्थाएं समाज की निष्काम सेवा में कार्यरत हैं।


मानव सेवा दल - नामकरण , गठन एवं पंजीकरण :

समाज में अध्यात्म ज्ञान प्रचार के माध्यम से मानवीय मूल्यों, नेतिक गुणों, स्वस्थ सामाजिक मर्यादाओं को मजबूत करने, तीर्थ स्थानों व अन्य स्थानों पर होने वाले सत्संग/ सद्भावना सम्मेलनों, शोभा यात्राओं में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं तथा तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु व्यवस्था व उनका मार्गदर्शन करने तथा दैविक व भौतिक आपदाओं में जनसमाज की निष्काम भाव व संगठित रूप से सेवा व सहयोग करने के पवित्र उद्देश्य से 3 अप्रैल, 1976 को मानव धर्म सम्मेलन (बैशाखी पर्व), श्री प्रेमनगर आश्रम, हरिद्वार में परमपूज्य श्री गुरु महाराज जी के आह्वान से मानव सेवा दल नाम से संगठन गठित किया गया, जिसमें उसी दिन से कुछ उत्साही कर्मठ निष्काम समाज-सेवक संगठित होने लगे। एक वर्ष के अंदर ही बहुत ज्यादा संख्या में प्रेमीगण/सेवक संगठन में सम्मिलित होकर निष्काम भाव से सेवा कार्य करने लगे। 28 मई, 1977 को गंगा दशहरा पर्व, सतलोक आश्रम, मुरादनगर, जिला गाजियाबाद (उ.प्र.) में संगठन को विधिवत् रूप में गठित किया गया और इसके सेवकों का नाम '' स्वयंसेवक '' रखा गया। कुछ वर्ष बाद 8 नवम्बर 1985 में मानव सेवा दल संगठन को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विधिवत् पंजीकृत किया गया। धीरे-धीरे संगठन का विस्तार पूरे भारतवर्ष में हो जाने से 22 जुलाई, 1988 को संगठन का अखिल भारतीय स्तर पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विधिवत् पंजीकरण किया गया।




मानव सेवा दल का उद्देश्य

  • मानव मात्र की भलाई के लिए, चाहे वह किसी जाति, धर्म या देश का हो, निष्काम भाव से मानव की सेवा करना।
  • मानव समाज में व्याप्त कुप्रवृत्तियों को समाप्त करने के लिए प्रयत्न करना तथा मानव का आध्यात्मिक उन्नति हेतु पंथ-प्रदर्शन करना ।
  • दैवीय अथवा भौतिक कारणों से उत्पन्न आपदाओं जैसे- बार्दे, सूखा, भूकंप, आगजनी अथवा अकाल आदि से पीड़ितों की सहायता के लिए प्राथमिक चिकित्सा एवं अग्निशमन दल आदि की व्यवस्था करना तथा सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक बड़े-बड़े मेले, पर्व-त्यौहार या भीड-भाड के अवसरों पर शिविर लगाकरें जनता को सुविधा हेतु प्याऊ लगाना व अन्य सुविधाए प्रदान करना, बिछुड़े हुए बच्चों को उनके अभिभावकों को सौंपना, खोया-पाया केंद्र में प्राप्त गुम हुए सामान को सूचना के माध्यम से संबंधित व्यक्ति को सौंपना एवं अन्य प्रकार की सेवाए अर्पित करना है।
  • प्रबंध आदि कार्यों को सुचारु रूप से करने के लिए सदस्यों को प्रशिक्षण देना तथा उनमें सहिष्णुता, एकता, त्याग, ईमानदारी, परस्पर सहयोग, अनुशासन एवं आत्म-विकास आदि गुणों को उत्पन्न करना।
  • मनुष्य का व्यक्तिगत रूप से धार्मिक एवं आध्यात्मिक, नैतिक, चारित्रिक, बौद्धिक एवं सामाजिक हित तथा जनकल्याण की भावना का विकास करना।
  • दूषित संस्कारों से बचाने के लिए तथा अच्छे एवं राष्ट्र हित के संस्कार बच्चों में डालने के उद्देश्य से बाल सभाओं का आयोजन करना तथा उनका शैक्षणिक एवं आध्यात्मिक विकास करना।
  • स्कूल, कॉलेज, वाचनालय, पुस्तकालय तथा छात्रावास आदि खोलने तथा क्रीड़ा-स्थल व तरणताल की व्यवस्था में सहयोग करना।
  • मानव सेवा दल के द्वारा एक ऐसे जनसमूह को तैयार करना जो कर्मठ हो और ईमानदारी एवं पवित्रता का जीवन व्यतीत करें। इसके साथ-साथ वह निष्काम भाव से मानव समाज की सेवा भी करें।
  • उपयोगी ज्ञान, जो मानव के हित के लिए हो, का स्वयं प्रसारण करना अथवा जो संस्थाएं इन उद्देश्यों की पूर्ति में संलग्न हैं उनके कार्यों में यथाशक्ति सहयोग देना तथा प्राप्त करना।